जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम् शरणागतम्। |
जय पूज्यपद पद्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।। |
|
जय देव देव दयानिधे, जय दीनबन्धु कृपानिधे। |
कर्मेश जय धर्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।। |
|
जय चित्र अवतारी प्रभो, जय लेखनीधारी विभो। |
जय श्यामतम, चित्रेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।। |
|
पुरुषादि व भगवत अंश जय, कास्यथ कुल, अवतंश जय। |
जय शक्ति, बुद्धि विवेक तव, शरणागतम् शरणागतम्।। |
|
जय विज्ञ शाश्वत धर्म के, ज्ञाता शुभाशुभ कर्म के। |
जय शांति न्यायाधीश तव, शरणागतम् शरणागतम्।। |
|
तब नाथ नाम प्रताप से, छुट जायें भव, त्रय ताप से। |
हो दूर सर्व कलेश मम्, शरणागतम् शरणागतम्।। |
|
जय दीन अनुरागी हरी, चाहें दया दृष्टि तेरी। |
कीजै कृपा करूणेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।। |
|
जय चित्रगुप्त यमेश तव, शरणागतम् शरणागतम्। |
जय पूज्यपद पद्मेश तव, शरणागतम् शरणागतम्।। |
|
ओम् जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे। |
भक्तजनों के इच्छित, फल को पूर्ण करे।। |
|
विघ्न विनाशक मंगलकर्ता, सन्तन सुखदायी। |
भक्तों के प्रतिपालक, त्रिभुवन यश छायी।। ओम् जय...।। |
|
रूप चतुर्भुज, श्यामल मूरत, पीताम्बर राजै। |
मातु इरावती, दक्षिणा, वाम अंग साजै।। ओम् जय...।। |
|
कष्ट निवारक, दुष्ट संहारक, प्रभु अंतर्यामी। |
सृष्टि सम्हारन, जन दु:ख हारन, प्रकट भये स्वामी।। ओम् जय..।। |
|
कलम, दवात, शंख, पत्रिका, कर में अति सोहै। |
वैजयन्ती वनमाला, त्रिभुवन मन मोहै।। ओम् जय...।। |
|
विश्व न्याय का कार्य सम्भाला, ब्रम्हा हर्षाये। |
कोटि कोटि देवता तुम्हारे, चरणन में धाये।। ओम् जय...।। |
|
नृप सुदास अरू भीष्म पितामह, याद तुम्हें कीन्हा। |
वेग, विलम्ब न कीन्हौं, इच्छित फल दीन्हा।। ओम् जय...।। |
|
दारा, सुत, भगिनी, सब अपने स्वास्थ के कर्ता। |
जाऊँ कहाँ शरण में किसकी, तुम तज मैं भर्ता।। ओम् जय...।। |
|
बन्धु, पिता तुम स्वामी, शरण गहूँ किसकी। |
तुम बिन और न दूजा, आस करूँ जिसकी।। ओम् जय...।। |
|
जो जन चित्रगुप्त जी की आरती, निश दिन नित गावैं। |
मान प्रतिष्ठा पाए जगत में , अमर लोक जावे ।। |
|
न्यायाधीश बैंकुंठ निवासी, पाप पुण्य लिखते। |
हम हैं शरण तिहारे, आस न दूजी करते।। ओम् जय...।। |
|
ओम् जय चित्रगुप्त हरे, स्वामी जय चित्रगुप्त हरे। |
|